Bhagat Singh : शहीदे आजम सरदार भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्राणों की आहुति देने वाले सबसे कम उम्र के महान क्रांतिकारियों में से एक थे। वह भारत देश की स्वतंत्रता के लिए बहुत कम उम्र में क्रांतिकारी बन गये। उन्होंने 23 साल तक की उम्र में ही ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिला दी थी। भगत सिंह के बलिदान ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया।
उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता की क्रांति को दिशा दी। वह देश के समस्त युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। साल 1931 में अंग्रेज सरकार ने उन्हें उनके 2 साथियों के साथ फांसी दे दी। आइये जानते हैं भगत सिंह का जीवन परिचय (Bhagat Singh Biography in Hindi)…

भगत सिंह की जीवनी – Bhagat Singh Biography in Hindi
नाम | भगत सिंह |
जन्म तिथि | 28 सितम्बर 1907 |
जन्म स्थान | लायलपुर, बंगा, पंजाब |
पिता का नाम | किशन सिंह |
माता का नाम | विद्यावती कौर |
भाई-बहन | कुलतार सिंह, कुलबीर सिंह, राजिंदर सिंह, जगत सिंह, रणबीर सिंह बीबी प्रकाश कौर, बीबी अमर कौर, बीबी शकुंतला कौर |
विवाह | अविवाहित |
शिक्षा | कला में स्नातक |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
संगठन | नौजवान भारत सभा, हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन, कीर्ति किसान पार्टी, क्रांति दल |
राजनैतिक विचारधारा | समाजवाद, राष्ट्रवाद |
मृत्यु | 23 मार्च 1931 |
मृत्यु स्थान | लाहौर |
स्मारक | द नेशनल शहीद मेमोरियल, हुसैनाबाद, पंजाब |
सरदार भगत सिंह कौन हैं? Who is Bhagat Singh in Hindi
भगत सिंह (Bhagat Singh) ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चल रहे भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के सबसे कम उम्र के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारी थे। इन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए न्योछावर कर दिया। देश प्रेम मानवता और भारत की आजादी के लिए उन्होंने बहुत कम उम्र से क्रांतिकारी सगठनों के साथ जुडकर देश की स्वतंत्रता में सहयोग किया। वह चन्द्रशेखर आजाद और लाला लाजपत राय के विचारों से प्रेरित थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने इनके मन पर बहुत प्रभाव डाला जिसके बाद इन्होने अपने जीवन को देश की आजादी के नाम कर देने का संकल्प ले लिया। पूरे देश के युवा इन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानते थे। अंग्रेज सरकार द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचार के वह सख्त खिलाफ थे। इस कारण से उन्होंने अंग्रेजों से देश को मुक्त कराने का प्रण लिया और इसके लिए इन्होने अपनी जान की बाजी लगा दी।
भगत सिंह का जन्म, माता-पिता और परिवार – Bhagat Singh Birth Mother Father & Family in Hindi
भगत सिंह (Bhagat Singh) का जन्म पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा नामक स्थान पर 28 सितम्बर 1907 को हुआ था। इनका जन्म पंजाब के क्रांतिकारी सिख परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। इनके जन्म के समय इनके पिता और चाचा अजीत सिंह जेल में थे। भगत सिंह के परिवार में इनके पांच भाई कुलतार सिंह, कुलबीर सिंह, राजिंदर सिंह, जगत सिंह, रणबीर सिंह और तीन बहने बीबी प्रकाश कौर, बीबी अमर कौर, बीबी शकुंतला कौर थीं।

इनका बचपन पंजाब में इनके पैत्रक घर में बीता। पिता और चाचा देश की आजादी के लिए स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए थे इनके पिता ग़दर पार्टी के सदस्य थे। ये बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम से जुडकर देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति में सम्मिलित होना चाहते थे। इनका जन्म स्थान वर्तमान समय में पाकिस्तान में है।
भगत सिंह की शिक्षा – Bhagat Singh Education in Hindi
सरदार भगत सिंह (Bhagat Singh) के जन्म के समय देश में स्वतंत्रता की क्रांति जोरो पर थी जिस कारण से इन्होने अपनी कक्षा पांच तक की शिक्षा गाँव के ही एक स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज लाहौर में इनके पिता ने इनका दाखिला करा दिया। यहाँ से इन्होने अपनी 12 वीं तक की शिक्षा पूरी की।
परन्तु यह महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित थे। इन्होने अपनी शिक्षा के दिनों में ही महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इनके पिता ने इन्हें लाहौर के नेशनल कालेज में दाखिला दिलाया। इन्होने वहां से अपनी स्नातक की शिक्षा की शुरुआत ही की थी, कि 1919 में हुई जलियाँवाला हत्याकाण्ड ने इनके मन पर काफी प्रभाव डाला। इसके बाद इन्होने अपनी शिक्षा को छोडकर देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का संकल्प लिया।
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जलियाँवाला बाग़ हत्याकाण्ड से भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत
साल 1919 में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड के दुखी होकर इन्होने अपनी स्नातक की पढाई छोड़ दी। जिस समय जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड हुआ वह अपने कॉलेज में थे, वह वहीँ से जलियाँवाला बाग़ आ गये। क्रांतिकारियों की दुर्दशा और ब्रिटिश सरकार की क्रूरता ने उनके मन पर बहुत असर डाला। इसके बाद उन्होंने अपनी आगे की पढाई छोड़कर क्रांतिकारी बनने का संकल्प ले लिया।
अपने कॉलेज के दिनों में भी वह महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन से जुड़े हुए थे और लगातार ब्रिटिश सरकार को चुनौती दे रहे थे। वह ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई किताबों को जला दिया करते थे। भगत सिंह को महात्मा गाँधी का सत्य और अहिंसा का मार्ग सही लगता था, उन्हें लगता था इस तरह से हमे बिना अधिक संघर्ष के ही आजादी मिल सकती है।
लेकिन चौरी-चौरा में हुए संघर्ष के बाद जब किसानों ने 21 पुलिस वालों को थाने में बंद कर के जला दिया तो महात्मा गाँधी ने अपना असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया। इससे भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि अहिंसा से आजादी नहीं मिलने वाली इसलिए उन्होंने चन्द्र शेखर आजाद और लाला लाजपत राय के साथ मिलकर क्रांतिकारी बनने का दृढ संकल्प ले लिया।
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भगत सिंह का क्रांतिकारी जीवन
भगत सिंह (Bhagat Singh) ने नौजवान भारत सभा नाम की पार्टी बनाई। जिसका लक्ष्य था देश में निडर और साहसी क्रांतिकारी तैयार करना। उन्होंने अपने साथियों तथा अन्य नौजवानों को इसका सदस्य बनाया। वे सभी मिलकर स्वतंत्रता की क्रांति में सहयोग करने लगे इसके साथ ही उन्होंने कई और क्रन्तिकारी पार्टियों की सदस्यता ली। उन्होंने चन्द्र शेखर आजाद की पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की सदस्यता ली।
वह चन्द्रशेखर आजाद के क्रन्तिकारी विचारों से काफी प्रेरित थे। 1 अगस्त 1925 को काकोरी ट्रेन कांड हुआ और ब्रिटिश सरकार ने 40 क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद बाद भगत सिंह (Bhagat Singh) ने अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा को हिदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन में मिला दिया और उसका नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रख दिया। अब वह अंग्रेज सरकार को खुले आम चुनौती देने लगे और जगह-जगह आंदोलन करने लगे।
साइमन कमीशन लाला लाजपत राय का निधन
30 अक्टूबर 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया उस समय लाला लाजपत राय के नेत्रत्व में आन्दोलन रखा गया। लाहौर स्टेशन के बाहर प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने क्रांतिकारियों पर लाठी चार्ज कर दी। जिससे लाला लाजपत राय समेत तमाम क्रांतिकारी बुरी तरह से घायल हो गये।
लाठी चार्ज से घायल होने के कुछ समय बाद लाला लाजपत राय का निधन हो गया जिससे पूरे देश में एक बार फिर क्रांतिकारी रोष में आ गये। लाला लाजपत राय के निधन से भगत सिंह के मन पर बहुत गहरा असर पड़ा। जिसके बाद भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद और उनके कई साथियों ने मिलकर इस घटना का ब्रिटिस सरकार से बदला लेने की ठान ली।
John Sounders की हत्या
साइमन कमीशन के विरोध में लाठी चार्ज के बाद लाला लाजपत राय का निधन हो गया। इसके बाद क्रांतिकारियों के साथ मिलकर भगत सिंह ने पुलिस सुपरिटेंडेंट स्काट को जान से मारने की योजना बनाई। इस योजना में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु और जयगोपाल सम्मिलित थे। 17 दिसम्बर 1928 को शाम को John Saunders के आने पर राजगुरु ने उन पर गोली चला दी।
परन्तु इसके तुरंत बाद भगत सिंह (Bhagat Singh) ने उस पर एक साथ कई बाद फायर किया जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद जब भगत सिंह और राजगुरु वहां से भागने लगे तो एक सिपाही चंदन सिंह ने इनका पीछा किया। चंद्रशेखर आजाद ने उससे कहा की वह वापस लौट जाये नहीं तो उसे भी मार दिया जायेगा। उसके न मानने पर चन्द्र शेखर आजाद ने उसे भी गोली मार दी। इसके बाद उन दोनों की मौत का इल्जाम भगत सिंह के सर पर लगा। ब्रिटिश सरकार से छुपने के लिए भगत सिंह को अपनी दाढ़ी और बाल भी कटवाने पड़े।
1929 एसेम्बली बम काण्ड और गिरफ़्तारी
भगत सिंह (Bhagat Singh) और उनके साथी साइमन रिपोर्ट को पास नहीं होने देना चाहते थे। इस कारण से उन्होंने यह योजना बनाई कि वह दिल्ली के सेन्ट्रल एसेम्बली हाल में बम फेकेंगे। वह यह चाहते थे कि अंग्रेज सरकार उनकी बात सुने और जबरदस्ती दमनकारी नियम भारत की जनता पर न थोपे।
साइमन बिल पेश किया गया और बहुमत न मिलने पर भी ब्रिटिश सरकार ने जनता के हित में कहकर बिल को पारित कर दिया। इस घटना के रोष के कारण बम फेंकने की योजना बनी। बम फेकने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का नाम निर्धारित किया गया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने एसेम्बली में बम फेंका और पर्चे बांटे। उन्होंने इन्कलाब जिंदाबाद के नारे भी लगाये।
बम फेंकने के पीछे उनका इरादा किसी को चोट पहुँचाने का नहीं था इसलिए खाली जगह पर बम फेंका और इस बार वह पुलिस से ना भागकर गिरफ्तारी देकर युवाओं को अच्छा संदेस देना चाहते थे। बम फेंकने के बाद दोनों वहीँ खड़े रहे जिससे पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। यह घटना 8 अक्टूबर 1929 को हुई थी।
भगत सिंह को फांसी
बम कांड के बाद भगत सिंह (Bhagat Singh) को इनके साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद उन्हें जेल में ड़ाल दिया गया। 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह (Bhagat Singh) को उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी की सज़ा सुनाई गई। जिसके बाद मदन मोहन मालवीय और महात्मा गाँधी ने तत्कालीन वायसराय से सिफारिस की कि इस पर रोक लगाई जाये और फांसी की सजा को माफ़ कर दिया जाये।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 23 मार्च 1931 को भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फांसी दे दी गई। इनकी फांसी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आग में घी का काम किया। क्रांतिकारी आन्दोलन और तेज हो गये।
भगत सिंह का व्यक्तित्व
भगत सिंह (Bhagat Singh) एक क्रांतिकारी विचारों वाले व्यक्ति थे। उन्हें खून खराबा पसंद नहीं था। वह जेल के दिनों में अपने विचारों को लिखा करते थे उन्हें पंजाबी के आलावा हिंदी, उर्दू, फारसी और बंगला भाषाएँ आती थी। वह बचपन से ही किताबें पढ़ने के काफी ज्यादा सौकीन थे। बह सदैव देश के कमजोर वर्ग के साथ रहना चाहते थे।
पूंजीपतियों से वह अंग्रेजों जितनी ही घ्रणा करते थे। उन्हें लगता था की उनकी मौत से शायद देश में आजादी की क्रांति और तेज हो सकती है। इसलिए उन्होंने कभी भी माफीनामा नहीं लिखा बल्कि अपने एक पात्र में उन्होंने ब्रिटिश सरकार से कहा था कि वह दोषी हैं। उन्हें गोली मार दी जानी चाहिए। भगत सिंह कविताएँ लिखा सकते थे।
उन्होंने देश प्रेम से ओत-प्रोत कविताएँ भी लिखी। भगत सिंह (Bhagat Singh) का जीवन सदैव ही युवाओं के लिए प्रेरणा का विषय बना रहा है। भगत सिंह ने विवाह नहीं किया क्योंकि इनका कहना था कि अगर आजादी से पहले मेरी कोई दुल्हन होगी तो वह मौत होगी। 23 साल की उम्र में उन्हें फांसीं दे गई थी।